फिर वही ढर्रा ज़िंदगी का
लौट आएगा.
पर साथ रह ही जाएँगी
वो बातें, वो यादें.
चाहकर भी नहीं छोड़ पाओगी
वो ख़त, वो मेरी लिखावट की
आख़िरी निशानी.
फेंकने के ख़्याल को भी
झटके से झटक कर
सीने से लगा लोगी
वो ख़त.
सहेज सम्भालकर रख ही लोगी
सोने की चूड़ियों के साथ
ज़री की साड़ियों की तहों के बीच.
और भूल जाओगी.
फिर वही ढर्रा ज़िंदगी का
लौट आएगा.
और बरसों बाद कभी
खोल बैठोगी वही संदूक.
सोने की चूड़ियों के बीच
फीकी पड़ चुकी होगी
मेरे ख़तों की चमक.
फेंक दोगी एक तरफ़ अनमने से
एक नज़र डालकर.
'अब छोड़ो भी, बहुत हुआ
कौन संभाले
बरसों बरस'.
बस....
फिर वही ढर्रा ज़िंदगी का लौट आएगा.
लौट आएगा.
पर साथ रह ही जाएँगी
वो बातें, वो यादें.
चाहकर भी नहीं छोड़ पाओगी
वो ख़त, वो मेरी लिखावट की
आख़िरी निशानी.
फेंकने के ख़्याल को भी
झटके से झटक कर
सीने से लगा लोगी
वो ख़त.
सहेज सम्भालकर रख ही लोगी
सोने की चूड़ियों के साथ
ज़री की साड़ियों की तहों के बीच.
और भूल जाओगी.
फिर वही ढर्रा ज़िंदगी का
लौट आएगा.
और बरसों बाद कभी
खोल बैठोगी वही संदूक.
सोने की चूड़ियों के बीच
फीकी पड़ चुकी होगी
मेरे ख़तों की चमक.
फेंक दोगी एक तरफ़ अनमने से
एक नज़र डालकर.
'अब छोड़ो भी, बहुत हुआ
कौन संभाले
बरसों बरस'.
बस....
फिर वही ढर्रा ज़िंदगी का लौट आएगा.