Wednesday, September 5, 2018

मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ

मैं चाहता हूँ
तुम्हें देखना
सर्दियों की एक खिली हुई सुबह.
जब एक हो जाएगी
धूप और तुम्हारे चेहरे की रंगत.

मैं चाहता हूँ
तुम्हें देखना
सोते हुए इत्मिनान से.
बिखरे-उलझे बालों वाली
उस मासूम सी बच्ची की तरह.
मैं चाहता हूँ
बैठना तुम्हारे सिरहाने रातभर
ताकि तुम थाम सको
मेरा हाथ
जब भी आए तुम्हें वो डरावना सपना
जिसमें तुम
भटक जाती हो
अहमदाबाद के सरसपुर की गलियों में.
पीछे लगे काले दाढ़ी वाले भेड़ियों
से बचने को जब
उठ बैठो पसीने से तरबतर.
आँख खुलते ही
लो ठंडी साँस मुझे पास बैठा देखकर.

मैं चाहता हूँ
तुम्हें गले लगा लेना
जब तुम देखोगी मेरी तरफ़ विश्वास से.
"शुनो ना....
मुझे क्यों लगता है
तुम बैठे हो मेरे सिरहाने
बीस साल से.
तुम जानते थे क्या
मैं सपनों में डरने लगूँगी
इन दोहरे चेहरे वाले लोगों की दुनिया से !!"

मैं चाहता हूँ
तुम्हें देखना
खिलखिलाकर हँसते हुए.
कि तुम्हारी आँखों में
आ जाए वो चमक,
निकल आएँ
पलकों के कोरों से
मोती जैसे दो क़तरे आँसू के.

मैं चाहता हूँ
तुम्हें देखना अलसाते हुए
एक ठंडी सुबह
बिस्तर में सिमटे हुए.
"पियोगी ?"
मैं पूछ लूँ तुमसे
चाय का प्याला थमाते हुए.
और तुम कहो
"हाँ ना...!!"