Thursday, March 3, 2016

आज मैं आकाश होना चाहता हूँ...

मैं आकाश होना चाहता हूँ
और तुम्हारे पास होना चाहता हूँ.
मीलों तक फैले
इस घास के मैदान
और पारदर्शी पानी की बहती
नदियों सी तुम्हारी बाहों को
छूना चाहता हूँ.
आज मैं आकाश होना चाहता हूँ.
मेरे सामने तुम
इस धरा सी
मुझ से हो दूर
बस ज़रा सी
मेरी तरफ़ देवदारों सी
बाहें उठाकर
मैं भी ज़रा सा झुककर
तुम्हें चूम लेना चाहता हूँ.
आज मैं आकाश होना चाहता हूँ.
घिरकर आते
बादलों को थाम के
इस हवा को मैं
तुम्हारे नाम से
इन सरगोशियों में
गुनगुनाना चाहता हूँ.
आज मैं आकाश होना चाहता हूँ.

3 comments:

  1. उन्मुक्त आकाश की कामना हर किसी की होती हैं लेकिन हर ख्वाब कहाँ सच होते है .
    बहुत सुन्दर ...

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  2. कोई हक़ीक़त कोई ख्वाब कोई सच -- सच सच हो

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  3. कोई हक़ीक़त कोई ख्वाब कोई सच -- सच सच हो

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