Tuesday, June 5, 2018

आना समय मिले तो

आ जाना फिर से
समय मिले तो
पहाड़ से नीचे उतरती
कच्ची सड़क वाले मोड़ पर.
बारिश हो तो
ज़िद कर लेना
ख़ुद से
मिलने के लिए
उस इक्कीस जुलाई की तरह
जिसके
लिए तुम लगाती थी
केलेंडर की तारीख़ों पर गोले.
‘प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़’
कहकर ज़िद से मना लेने ख़ुद को.
आ जाना
अगर बारिश हो
उस रोज़ की तरह
जब आयी थी तुम
‘बस, पाँच मिनट के लिए’
नज़र बचाकर
वक़्त की भागदौड़ से.
करना वही ज़िद
पहाड़ के मुहाने पर खड़े होकर
दुप्पटे से हम दोनों को ढँकने की.
आ जाना
याद करेंगे
उन काले धागों को
जो तुम ले आती थी
जाने कहाँ से.
तुम्हें लगता था जो
बचा लेगा
दुनियाभर की बुरी नज़रों से
हम दोनों को.
आना भरी बरसात में
ढूँढेगे उस जामुनी रंगे ताबीज़ को भी
जो खो गया था
तुम्हारे हाथ छूटकर.
‘ये अच्छा नहीं हुआ’
तुमने डर कर कहा था.
तुम्हारे वहम पर हँसेंगे
ये बेकार की बातें हैं
मैं फिर दोहरा दूँगा.
आ ज़रूर
मैं दिखाऊँगा तुम्हें
मैंने ढूँढ ली है
उस ताबीज़ खो जाने की जगह.
वहाँ एक पेड़ उग आया है
जामुनी रंग के फूलों का.

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