Saturday, June 9, 2018

कत्थई आँखों से उतार देना चश्मा

तुम बोलना मत
बस
देखती रहना
मेरी आँखों में.
पढ़ लेना
वक़्त की मजबूरियों का
हर पन्ना.
देखना अंडरलाइन किए हुए दिन.
मोड़कर रखे
कुछ सफ़हे
जिन्हें मैं पढ़ना चाहता था
बोलकर
तुम्हें सामने बैठाकर
ठीक इसी तरह
खिड़की से पीठ सटाकर.
हाथ में ब्लैक कॉफ़ी का लाल मग
अटकाती रहना
चेहरे पर बार बार
आ जाने वाली लट को
बुंदियों वाले डैंगलर के पीछे.
चलो मैं शुरू करता हूँ
मुड़े सफ़हों को खोलना
बस
देखती रहना मेरी तरफ़.
बोलना मत.
सुनती रहना जब तक सुन सको.
उतार देना
कत्थई आँखों से चश्मा
जब कहने का मन हो
‘कृपा पृष्ठ पलटें....!!’कत्

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