Friday, June 15, 2018

अलविदा मत कहना

बचाए रखना
शब्दों को ख़त्म होने से.
बचा लेना
ख़ुद को भी
शब्द के बेवजह इस्तेमाल से.
शब्द क़ीमती होते हैं
अर्थ निकाल जाए
तो क़ीमत ख़त्म.
बचाए रखना
शब्दों की क़ीमत लगने से.
और ख़ुद को भी
अर्थ होने से.
अर्थ का अनर्थ होने तक
बचाए रखना
उस शब्द को
जिसके बाद खो जाएँगे
मेरे और तुम्हारे
शब्द
अर्थ गर्त
और रिश्ते मिट्टी.
बचाए रखना
ख़ुद को
अलविदा कहने से.

Saturday, June 9, 2018

कत्थई आँखों से उतार देना चश्मा

तुम बोलना मत
बस
देखती रहना
मेरी आँखों में.
पढ़ लेना
वक़्त की मजबूरियों का
हर पन्ना.
देखना अंडरलाइन किए हुए दिन.
मोड़कर रखे
कुछ सफ़हे
जिन्हें मैं पढ़ना चाहता था
बोलकर
तुम्हें सामने बैठाकर
ठीक इसी तरह
खिड़की से पीठ सटाकर.
हाथ में ब्लैक कॉफ़ी का लाल मग
अटकाती रहना
चेहरे पर बार बार
आ जाने वाली लट को
बुंदियों वाले डैंगलर के पीछे.
चलो मैं शुरू करता हूँ
मुड़े सफ़हों को खोलना
बस
देखती रहना मेरी तरफ़.
बोलना मत.
सुनती रहना जब तक सुन सको.
उतार देना
कत्थई आँखों से चश्मा
जब कहने का मन हो
‘कृपा पृष्ठ पलटें....!!’कत्

Tuesday, June 5, 2018

आना समय मिले तो

आ जाना फिर से
समय मिले तो
पहाड़ से नीचे उतरती
कच्ची सड़क वाले मोड़ पर.
बारिश हो तो
ज़िद कर लेना
ख़ुद से
मिलने के लिए
उस इक्कीस जुलाई की तरह
जिसके
लिए तुम लगाती थी
केलेंडर की तारीख़ों पर गोले.
‘प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़’
कहकर ज़िद से मना लेने ख़ुद को.
आ जाना
अगर बारिश हो
उस रोज़ की तरह
जब आयी थी तुम
‘बस, पाँच मिनट के लिए’
नज़र बचाकर
वक़्त की भागदौड़ से.
करना वही ज़िद
पहाड़ के मुहाने पर खड़े होकर
दुप्पटे से हम दोनों को ढँकने की.
आ जाना
याद करेंगे
उन काले धागों को
जो तुम ले आती थी
जाने कहाँ से.
तुम्हें लगता था जो
बचा लेगा
दुनियाभर की बुरी नज़रों से
हम दोनों को.
आना भरी बरसात में
ढूँढेगे उस जामुनी रंगे ताबीज़ को भी
जो खो गया था
तुम्हारे हाथ छूटकर.
‘ये अच्छा नहीं हुआ’
तुमने डर कर कहा था.
तुम्हारे वहम पर हँसेंगे
ये बेकार की बातें हैं
मैं फिर दोहरा दूँगा.
आ ज़रूर
मैं दिखाऊँगा तुम्हें
मैंने ढूँढ ली है
उस ताबीज़ खो जाने की जगह.
वहाँ एक पेड़ उग आया है
जामुनी रंग के फूलों का.