मेरे प्रेम की शुरुआत
मेरी कविता के अंत में नहीं है.
और न ही वह सच है
जो मैंने लिख डाला है
कविताओं में.
अंतहीन, अनंत
हर्फ़ दर हर्फ़
बनते शब्द/
और उनके गूढ़ और जटिल
अर्थों की तरह ही
मेरी संवेदनाएं
और
मेरा प्रेम भी
शायद यूँ ही उलझा हुआ है/ और
रहेगा/ बिना कहे ही
शायद समझ पाओ तो
सही/ या फिर मायूसी
सी सहोगी
सही शब्दों को सुनने के
इंतजार में
ख़त्म होने वाली इस
कविता की तरह.
मेरी कविता के अंत में नहीं है.
और न ही वह सच है
जो मैंने लिख डाला है
कविताओं में.
अंतहीन, अनंत
हर्फ़ दर हर्फ़
बनते शब्द/
और उनके गूढ़ और जटिल
अर्थों की तरह ही
मेरी संवेदनाएं
और
मेरा प्रेम भी
शायद यूँ ही उलझा हुआ है/ और
रहेगा/ बिना कहे ही
शायद समझ पाओ तो
सही/ या फिर मायूसी
सी सहोगी
सही शब्दों को सुनने के
इंतजार में
ख़त्म होने वाली इस
कविता की तरह.
sahi likh rahe ho bhai, prem to goonga hi hota hai.
ReplyDeleteBahut umda sir
ReplyDeleteBahut umda sir
ReplyDeleteएक छोटी सी कहानी प्रेम की
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