वो अच्छा आदमी था
बेजुबान काम करने वाला.
उसने कभी शिकायत नहीं की
पगार बढ़ने की मांग भी नहीं.
और न ही कुर्सी के पास टेबल फैन लगाने की
वो अच्छा आदमी था.
चिल्लाने वाले मोटे बॉस
की नक़ल भी
कभी नहीं की उसने,
ड्यूटी के बाद भी नहीं.
न कभी डेस्क की गलतियाँ
'प्रूफ़ वालों' पर डालने की परम्परा का विरोध.
'मेरा उससे अधिक वास्ता नहीं रहा, लेकिन प्रोडक्शन वालों ने बताया
वो अच्छा आदमी था.' जीएम ने कहा.
कल ही उसने
मिन्नत की थी पहली बार
'वीकली ऑफ एडजस्ट' करने के लिए,
वोह छुट्टी पा गया, ह
मेशा के लिए.
कृष्ण कुमार अच्छा आदमी था.
दो मिनट का मौन
बहुत है उस जैसे
अच्छे आदमी (कर्मचारी) के लिए.
अब जाइये,
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दुनिया भर के बुरे लोगों की खबरें.
(यह कविता साल 2003 में दुर्घटना में मारे गए दैनिक भास्कर के प्रूफ़ रीडर कृष्ण कुमार के लिए लिखी थी)
भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और उनके घर वालों को इस असहम्य दुख को सहने की ताकत दे
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