Monday, March 16, 2009

एक अदद चारदीवारी...


कमरे की चारदीवारी


में घुटते दम


और बेचैनी से


एक दम भर लेने को


झांकता हूँ


खिड़की से बाहर।


अधबने, खंडहर


हो रहे मकान की दीवार में


घोंसला बनाने की चाहत में


तिनके-तिनके के लिए बेदम होती


चिडिया को देखकर


महसूस होती है


जरूरत


एक अदद घर होने की।


सर पर छत और


चौगिर्द चारदीवारी का


साया होने का सूकून


लिए मैं लौटता हूँ


चारदीवारी के भीतर।


1 comment:

  1. sahi kaha aapne ek ghonsla to sab ko chahiye.ye bhi bada sukoon deta hai.

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