Monday, March 30, 2009

मैं महानगर बनता जा रहा हूँ...

मैं महानगर बनता जा रहा हूँ

और इसका अहसास भी

हुआ मुझे उसी रोज़

जब मैंने पाया

खुद को

हर दिशा से आई परेशानियों से घिरे हुए जो

मुझमे घर बनाने को आतुर थी।

तब मैंने जाना

इन परेशानियों के चेहरे

जाने पहचाने तो हैं

परिचित नहीं।

तभी मुझे लगा

मैं महानगर बनता जा रहा हूँ।

फ़िर उस रोज़

मेरे दिमाग के बीचोंबीच

एक चौराहे पर विचारों का

ट्रेफिक जाम हो गया।

पीछे कहीं फंस गयी यादों की चिल्लपों

के बाद मैं थम गया, लाल बत्ती सा।

तब मुझे लगा मैं महानगर बनता जा रहा हूँ।

और अभी कल ही तो

मेरे सीने से होकर गुजर रही

एक याद

वक्त की ताव न सहकर

गिर पड़ी

गश खाकर।

लोगों का हुजूम उसके चेहरे पर झुका,

मर गयी!

"अरे आगे बढो, देर हो रही है"

किसी विचार ने कहा।

और तभी मुझे लगा मैं महानगर बनता जा रहा हूँ।

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