Friday, November 2, 2018

रिश्तों पर बर्फ़. !!

वो देखो
उठ रही है भाप
उस छोटे पहाड़ पर जमी बर्फ़ से.
उग रहा है सूरज 
देवदारों के पीछे से.
गुनगुनाती हुई आ रही है
हवा पगडंडी पर फिसलते.
उड़ा लायी है
चीड़ के एक सूखे पत्ते को.
मैं पहचान रहा हूँ इस पत्ते को.
ये वहीं का है
जिसके तने पर उकेरा था
तुमने 'सारा'.
भाग रही है पगली हवा
बिना देखे इधर उधर
पैर उलझाकर गिरेगी
उधर मैदान में.
हाथ से उड़ जाएगा पत्ता
रोएगी पहाड़ की ओर देखकर.
बर्फ़ छँट जाएगी
खिल जाएँगे लेंटाना के हज़ारों फूल.
हवा खिलखिलाएगी.
बर्फ़ से उठी भाप बादल बनकर
छा जाएगी आसमान में.
हवा को उठा लेगी गोद में.
तब बताना तुम मुझे
क्यों जम जाती है
रिश्तों पर बर्फ़. !!

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