Friday, November 2, 2018

इश्क़ में बदक़िस्मत

तुम भी
खोल बैठना मन की तहें
बरस जाना
जाते हुए मॉनसून
की ठहरी सी आख़िरी बौछार सी.
मैं तुम्हारी डबडबायी आँखों
से बह निकले काजल को समेट लूँगा.
तुम सुनाना
इश्क़ में डूबे उन
जवान शामों के क़िस्से.
कोरेगाँव पार्क के
क्लब के अंधेरे कोने में
'आउट' होकर
आग़ोश में झूल जाने तक
खायी गयी
नयी दुनिया बसा लेने
जैसी क़समों की फ़ेहरिस्त.
मैं ले चलूँगा तुम्हें अगले दिन
एक ख़ुशनुमा सुबह की सैर पर.
तुम बताना
उस नाकाम प्रेम कहानी
के नायक की बेवफ़ाई
का सबब.
पिंपरी-मुंबई हाइवे पर
लॉंग ड्राइव में
बरसात भरे दिन
हाथ पर हाथ रखकर भी
आई लव यू न बोल पाने का पछतावा.
वट्सएप पर इश्किया इज़हार
के बदले में नीले डंडों
देखने की इंतज़ार
में हुई सुबह का
हैंगओवर.
कह नहीं पाओ तो मत कहना.
मैं तुम्हारे लरजते लबों
से समझ लूँगा दर्द का क़िस्सा.
रीत जाना
सावन की सफ़ेद होती
बदली की तरह.
बरस जाना मुझ पर
निकाल लेना भड़ास
उन रिश्तों के पीछे भागने
की मजबूरी की.
खड़कवासला चलने की ज़िद
करने वालों का
ग़ुस्सा निकाल देना मुझ पर.
नज़र बचाकर सब से
लगा लेना वाइट मिसचीफ़
सिक्स्टी ऐमएल
आख़िरी बार.
फिर हम चलेंगे
खराड़ी में चाय पीने.
मैं चाहता हूँ हटाना तुम्हारे मन से
इश्क़ में बदक़िस्मत होने का बोझ.

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