Friday, November 2, 2018

बारिशों में अब ज़ुकाम नहीं होता.

बारिशों में
अब ज़ुकाम नहीं होता. 
क्योंकि 
अब भीगते हुए नहीं जाता हूँ
गुलमोहर तले
झरते फूलों को चुनने.
बहुत साल से
तुम्हें भी नहीं देखा है
ऐसे मौसम में.
सिर को दुप्पटे से ढाँपे
बारिश से बचते हुए आते हुए.
तुम्हारी ऊनींदी सी आँखें
और सुर्ख़ हुई नाक
भी अब ठीक से याद नहीं है.
'अपना रुमाल दो ज़रा'
ऐसा सुने भी
बहुत साल हुए.
'तुम्हें ज़ुकाम नहीं होता?'
तुमने पूछा था ना
मेरे कंधे से नाक रगड़कर
हल्की शरारत भरकर.
'लगा दूँ तुम्हें भी?'.
जेब से रुमाल निकालकर देखा है अभी.
पोंछ लिया है नाक
यूँ ही.
ये उम्र का तक़ाज़ा है.
अमूमन
ऐसे मौसमों में मुझे प्यार हुआ करता है....!!

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