Friday, November 2, 2018

मैं आकाश होना चाहता हूँ



मैं आकाश होना चाहता हूँ
और तुम्हारे पास होना चाहता हूँ. 
मीलों तक फैले
इस घास के मैदान
पारदर्शी पानी 
की नदियों सी 
तुम्हारी बाहों को 
छूना चाहता हूँ.
मेरे सामने तुम
इस धरा सी
मुझसे हो दूर
बस ज़रा सी.
मेरी तरफ़ देवदारों सी
बाहें उठाकर
मैं भी बादल सा
थोड़ा झुककर
तुम्हें चूम लेना चाहता हूँ.
आज मैं आकाश होना चाहता हूँ.
घिरकर आते 
बादलों को थाम के
इस हवा को 
मैं तुम्हारे नाम से 
इन सरगोशियों में
गुनगुनाना चाहता हूँ.
आज मैं आकाश होना चाहता हूँ.

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