उठकर देखना तो ज़रा
खिड़की के बाहर
क्या बचे है
हारसिंगार के फूल
डालियों पर.
रात भर जी भर के रोयी रात
के आँसू
सफ़ेद फूलों में बदल जाते हैं.
भीतर समेटे रहने की कोशिश
हो जाती है नाकाम
शाम होते ही.
घुट आती हैं यादें
बादल बन कर.
तुम्हारे साथ गुज़री शाम
कौंधती है बिजली सी.
समझ जाता हूँ
कैसे गुज़रेगा कल का दिन.
तरबतर सुबह के बाद
सीला दिन.
खिड़की के बाहर
क्या बचे है
हारसिंगार के फूल
डालियों पर.
रात भर जी भर के रोयी रात
के आँसू
सफ़ेद फूलों में बदल जाते हैं.
भीतर समेटे रहने की कोशिश
हो जाती है नाकाम
शाम होते ही.
घुट आती हैं यादें
बादल बन कर.
तुम्हारे साथ गुज़री शाम
कौंधती है बिजली सी.
समझ जाता हूँ
कैसे गुज़रेगा कल का दिन.
तरबतर सुबह के बाद
सीला दिन.
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